मानवी रे, जोवे छे शु, तू तकी तकी ने आभ मा
नही करी आपे ऐ साचु, जे जोयु छे ते खाब मा
त्नन्ख्ला वीणी वीणी ने, ना कर उभा महल एवा
पवन ना हळवा झोका साथे, ढ्ळी पड़े जे खाख माँ
साच्वी ने धर तू पग़ला ,हळवे हळवे धरती पर
ना वळग तू लहरों ने, समंदर नि भरती पर
मान्वु होए तो मानी ले, प्रेम ना रसता ठीक नथी
सर्वश्व डूबी जाशे तारु, दिल नि एक उभरती पर
नही करी आपे ऐ साचु, जे जोयु छे ते खाब मा
त्नन्ख्ला वीणी वीणी ने, ना कर उभा महल एवा
पवन ना हळवा झोका साथे, ढ्ळी पड़े जे खाख माँ
साच्वी ने धर तू पग़ला ,हळवे हळवे धरती पर
ना वळग तू लहरों ने, समंदर नि भरती पर
मान्वु होए तो मानी ले, प्रेम ना रसता ठीक नथी
सर्वश्व डूबी जाशे तारु, दिल नि एक उभरती पर
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