हलकी सुनहरी मासूम सी बूंदें
मचलके, बरसके , बिखर ही गई
किसी ने चाहे हों रुदन मैं बहाई
किसी और की खुशी की वजह बन गई
मोम के पिघलने का सिलसिला जो चला
परवाने की आरजू कुछ और निखर गई
किसी को जगमाती महफिल का मिला आलम
किसी को इश्क मैं मरने की सज़ा तन गई
नज़रों ने उनके हुस्न का कुछ ऐसा बयान दिया
दरमियान मैं जीती जागती मूरत सवर गई
जिस मासूमियत पे वफाओ की कसमें उठाई गयी
वही नामुराद हट के दघा कर गई
महफिल से उठ के जाना, यु अचानक इस तरह
उससे बाबस्ता यह पैगाम दे गया
कभी ना उसकी खुसबू से महकेगा अब यह आलम
जाते जाते आखरी सलाम दे गया
मचलके, बरसके , बिखर ही गई
किसी ने चाहे हों रुदन मैं बहाई
किसी और की खुशी की वजह बन गई
मोम के पिघलने का सिलसिला जो चला
परवाने की आरजू कुछ और निखर गई
किसी को जगमाती महफिल का मिला आलम
किसी को इश्क मैं मरने की सज़ा तन गई
नज़रों ने उनके हुस्न का कुछ ऐसा बयान दिया
दरमियान मैं जीती जागती मूरत सवर गई
जिस मासूमियत पे वफाओ की कसमें उठाई गयी
वही नामुराद हट के दघा कर गई
महफिल से उठ के जाना, यु अचानक इस तरह
उससे बाबस्ता यह पैगाम दे गया
कभी ना उसकी खुसबू से महकेगा अब यह आलम
जाते जाते आखरी सलाम दे गया
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