Thursday, January 7, 2010

(112) इशतिबाह

आब -ओ-गिल से मिल गए
फिर भी शुबा है दिल मैं
कैसे यकीन हों उनको
ज़र्ब हमने भी सहा है

हासिल नहीं हों जाती
युही किसीको जन्नत
काफ-ए-दस्त मैं उनके
देखें क्या लिखा है

सबब नहीं पूछा करतें
आंसुओं से दिल जलो का
आब-ए-दिदाह मिलेंगे
उल्फत जहाँ जहाँ हैं

पासबान नहीं था कोई
साकी भी पता नहीं
होश मैं रहे हम फिरभी
इतना वजूद रहा है

ताब ऐसा इश्क का था
वोही नहीं जले थे
लोगोने हमें भी उनसा
पाक़ तालिब कहा है

इशतिबाह रखने वाले
खुदको फिर तराशें
फारिघ होके उसने
प्यार किया कहाँ हैं ?

आब-ओ-गिल -water and clay
ज़र्ब-blow
काफ-ए-दस्त -palm
आब-ए-दिदाह -tears
पासबान-guard
साकी-bartender
ताब -heat
तालिब-lover
इशतिबाह doubt
फारिघ -free

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