Wednesday, November 18, 2009

(88) Nov 2

ना जुबां बोल पाए
ना समझ मैं कुछ आये
कोई कुछ कहे, मशवरा सा लगे
जाने क्यों दिल ग़म से भरा सा लगे

पानी के बुलबुले है
या मन से बहतें आंसू
वजूद जस्बातों का अब ज़रा सा लगे
जाने क्यों दिल ग़म से भरा सा लगे

बाहों का आलिंगन
होठों की छुअन
हर जस्बा तेरा हमें कटघरा सा लगे
जाने क्यों दिल ग़म से भरा सा लगे

उमीदो की रुसवाई
ख़्वाबों का जनाज़ा
एतबार का होसला कुछ  डरा सा लगे
जाने क्यों दिल ग़म से भरा सा लगे

आँखों मैं खून आया
लफ्ज़ों मैं ज़हर बरसे
तेरे दिल मैं मेरा प्यार अब मरा सा लगे
जाने क्यों दिल ग़म से भरा सा लगे

भूलना जो तुझे चाहू
कैसे मैं भुला पाऊ
मेरी रगों मैं तेरा दर्द अब भी हरा सा लगे
जाने क्यों दिल ग़म से भरा सा लगे

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