Wednesday, November 18, 2009

(92) Nov 16

आया हूँ लम्हों के लिए
देखूं की तुम कैसी हों
        अब भी मुस्कुराती हों
        या आँखें सुजाये बैठी हों


क्या अब भी बातें करती हों
बेवजाह सारी दुनिया से
        या मेरी आवाज़ सुनने को
        कान लगाये बैठी हों


आईने से मुह मोड़ लिया
या अब भी सजती सवरती हों
        आकर तुम्हे एक नज़र देखू
        क्या आस लगाये बैठी हों


भूल गयी हों तुम मुझको
की हूँ मैं तुम्हारे खयालो मैं
        मिल जाऊ मैं फिर से शायद
        क्या सांस लगाए बैठी हों


बावरी हों अरी,तुम ना जानो
मैं आज़ाद परिंदा हूँ
        आऊंगा ना फिर दुबारा
        क्यों ख्वाब सजाये बैठी हों

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