Tuesday, October 21, 2008

(53) की जाना पड़ा

ना चली हवा
ना मिला पता
ढूंढे मकाँ
ना मीला नीशां

कदम बढे
चलते रहे
फिर भी रहा
रूका कारवां

कुछ था कहीं
जो राहों की डोर
थाम कर कहे
अभी न जा

मंजील मगर
देके सदा
पुकारे थी यूँ
की जाना पड़ा

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