तुमसे नफरत करना चाहूँ
कैसे भी मैं कर ना पाऊं
कसूर तुम्हारे आख़िर क्या है ?
लेकिन ये ग़म सह ना पाऊं
तुम्हे शायद पता नहीं है
क्या कया मैंने सहा नही है
तुम ना मिले , ना प्यार मिला पर
तुमसे कभी कुछ कहा नही है
आख़िर क्यों है जीवन ऐसा
ताश के बिखरें पत्तो जैसा
तुमसे रिश्ता जुड़ ना पाया
फिर भी नाता तुमसे कैसा ?
यादों का बिखरा है साया
हर दिन नई उदासी लाया
रंजीश है दिल को बस इतनी
तुमसे दिल की कह ना पाया
कैसे भी मैं कर ना पाऊं
कसूर तुम्हारे आख़िर क्या है ?
लेकिन ये ग़म सह ना पाऊं
तुम्हे शायद पता नहीं है
क्या कया मैंने सहा नही है
तुम ना मिले , ना प्यार मिला पर
तुमसे कभी कुछ कहा नही है
आख़िर क्यों है जीवन ऐसा
ताश के बिखरें पत्तो जैसा
तुमसे रिश्ता जुड़ ना पाया
फिर भी नाता तुमसे कैसा ?
यादों का बिखरा है साया
हर दिन नई उदासी लाया
रंजीश है दिल को बस इतनी
तुमसे दिल की कह ना पाया
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