Saturday, October 25, 2008

(56) अफ़सोस

तुमसे नफरत करना चाहूँ
कैसे भी मैं कर ना पाऊं
कसूर तुम्हारे आख़िर क्या है ?
लेकिन ये ग़म सह ना पाऊं

तुम्हे शायद पता नहीं है
क्या कया मैंने सहा नही है
तुम ना मिले , ना प्यार मिला पर
तुमसे कभी कुछ कहा नही है

आख़िर क्यों है जीवन ऐसा
ताश के बिखरें पत्तो जैसा
तुमसे रिश्ता जुड़ ना पाया
फिर भी नाता तुमसे कैसा ?

यादों का बिखरा है साया
हर दिन नई उदासी लाया
रंजीश है दिल को बस इतनी
तुमसे दिल की कह ना पाया

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